shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –२१

"तो भय्या, तम्हारा वकील नाराज होवे है तो होने दो।" लालाजी ने गनेशीलाल की ओर मुख़ातिब होकर कहा और फिर चौधरी नत्थूसिंह की ओर देखकर बोले, "तुम भी भय्या कोतवाल को नाराज हो जाने दो। ज्यादा-से-ज्यादा चार-छह महीने का महमान ही तो है। जल्दी चाहोगे तो डिप्टी साहब से बात कर लेंगे। पर धरम की मरयादा, चाहे प्रान भले ही चले जावे, रहनी चाहिए। क्यों, क्या कहो हो ?"

दोनों कुछ सोच में पड़ गए थे। लालाजी ने मौन को स्वीकृति मानकर आगे कहा, “मुझे तो वह गुरुकुल का पढ़ा हुआ लौंडा भावै है। कैसी पवित्र आत्मा है उसकी। एकदम सच्चा और सुद्ध। फिर सबसे ज्यादा नम्बर भी उसी के हैं। और संस्कीरत का विद्वान। पूरा हिन्दू। बिलकुल वैसा ही हिन्दू जैसा भय्या गनेसीलाल चावै हैं। क्यों भय्या नत्थूसिंह, अब तुम भी कुछ अपने विचार सामने रक्खो ना !" नत्थूसिंह के पास रखने को कोई विचार था ही नहीं। बोले, "ठीक है, मगर कुछ जंचता नहीं है।"

लालाजी ने भाँप लिया कि उनके निर्णय से कोई नाराज नहीं हुआ, तो वह फिर गनेशीलाल की और घूमे। गनेशीलाल ने कहा, "मेरे विचार से तो उसकू एक बार फिर से बुलाके इंटरव्यू कर लें।"

लालाजी को विश्वास हो गया कि आधी बाजी जीत ली है। इसीलिए तुरन्त गनेशीलाल की 'हाँ' में 'हाँ' मिलाकर उन्होंने कहा, "हाँ भय्या ! बच्चों की बात आजकल कू जनता को सिकायत होवै, क्या फायदा ? पहले से ही ठोक बजाकर देख लेना अच्छा है आदमी कू।" फिर घंटी बजाकर उन्होंने उत्तमचन्द को बुलाया, और उसे सत्यव्रत को बुलाने की आज्ञा दी। और मन-ही-मन समझौते के इस बिन्दु पर एकमत होते हुए तीनों आदमी इंटरव्यू लेने की मुद्रा में बैठ गए। चौधरी नत्थूसिंह ने कोट के बटन खोलते हुए अपनी गोल टोपी संभाली। गनेशीलाल ने हल्दी से रंगी अपनी धोती की पूंचड़ को लाँग में ठूँस लिया। लालाजी बोले, "इत्ती छोटी-छोटी बातों पर आपस में मनमुटाव नहीं करना चाहिए। मैं तो कहूँ हूँ इनसाप के लिए लोगों ने किते-किते त्याग कर दिए। अब यही लो, पाठक के लिए आप दोनों ने अपने अपने रिस्तेदारों को नाराज कर दिया तो भला वकील या कोतवाल किस खेत की मूली हैं?"

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